शादीशुदा बहन को उसकी सहेली के नाम से पटाया

Dilshad Ahmad


इस कहानी में पढ़ें कि मेरी बड़ी बहन त्यौहार पर हमारे घर आई हुई थी. जीजू से दीदी को पूरी चुदाई नहीं मिलती थी. एक दिन मैंने दीदी को अधनंगी देखा तो मेरा मन उसकी चुदाई का हो गया.

मेरा नाम उल्हास है उम्र 24 साल और मैं दिल्ली में रहता हूँ. मेरा कद 5'6″ है. वास्तव में मैं भोपाल के पास एक गाँव का रहने वाला हूँ. मेरे परिवार में पापा, माँ और दो बहनें हैं.

मुक्ता की उम्र 29 साल, कद 5'4″ है. उनका एक बेटा 4 साल का है. और युक्ति की उम्र 26 साल, कद 5'2″ है गाँव में रहने की वजह से हमारा परिवार पुरानी सभ्यता पर ही चलता है जो आधुनिकता से कम ही जुड़ा हुआ है.

यह घटना उस समय की है जब मेरी बड़ी बहन की शादी शहर में हो गई थी. मेरी बहनों और मेरे बीच साधारण रिश्ते ही थे, मैंने कभी भी उन्हें गलत निगाहों से नहीं देखा था। त्यौहार का समय था और घर पर सभी आये हुए थे.

मैं कमरे में बैठा हुआ था. तभी अचानक से मुक्ता दीदी नहाकर आई और साड़ी पहनने लगीं. उनके लाइट के बल्ब के सामने खड़े हो जाने से कमरे में अन्धेरा सा हो गया था.

जब मैंने बहन की तरफ देखा तो देखता ही रह गया. लाईट के सामने खड़ी होने की वजह से पेटीकोट के अन्दर दीदी की गांड साफ़ साफ़ दिखाई दे रही थी.

उसका 34 28 36 का फिगर मुझे रोमांचित कर रहा था. उसकी गांड अब थोड़ी बड़ी हो गई थी. अब मेरा नजरिया अपनी बहन के प्रति बदलने लगा था पर बहन के पुराने ख्यालों की होने से उससे कुछ कह भी नहीं सकता था.

तभी मैंने सोचा कि बहन की खूबसूरती की तारीफ की जाये. पर उसने मेरी बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। फिर मैंने सोचा कि ऐसे तो बात बनने से रही.

तो मैंने उसकी बचपन की सहेली शीनम के नाम से फेक फेसबुक आईडी बनाकर रिक्वेस्ट भेज दी. कुछ समय बाद बहन का मैसेज आया- हाय शीनम! कैसी हो? बहुत दिनों बाद याद किया!

मैंने भी रिप्लाई में लिखा- हां यार, शादी के बाद सब पीछे का पीछे ही छूट गया। मुक्ता- हां यार! मैंने कहा- और सुना? मुक्ता- कुछ नहीं बस कट रही है.

मैं शीनम मजाक करते हुए- क्या फट रही है? किसने फाड़ दी?

मुक्ता- फट नहीं कट बोला … और फाड़ने वाला तो भोपाल में ही काम में लगा रहता है, 3-4 महीने में एक बार आता है, उससे मेरी क्या फटती!

अपनी बहन के मुख से ये सब सुनकर में तो सन्न ही रह गया. जिस बहन को इतनी सीधी समझता था, वह तो बहुत बड़ी चोदू और भूखी निकली।

मैं शीनम - तो और किसी को पटा ले जो तेरी फाड़ सके!

मुक्ता- कोई कहाँ से पटा पाती! घर से बाहर जाने का कभी मौका ही नहीं मिलता काम की वजह से!

मैं- तब तो तू भूखी ही रह जायेगी?

मुक्ता- हां यार, अब कर भी क्या सकते हैं!

मैं - कर तो सकते है, पर तू कर नहीं पाएगी.

मुक्ता - बता तो … मैं करने की पूरी कोशिश करूँगी!

मैं- अच्छा, तो सुन अपने भाई को पटा ले! वह जब तू चाहेगी, तब चोदेगा तुझे और हर कहना मानेगा.

मुक्ता- पागल है तू? भाई के साथ कोई ऐसा करता है भला!

मैं - मैं तो करती हूँ. अब मेरे पति की भी पोस्टिंग बाहर ही है ना! तो वे भी कम ही घर आ पाते हैं. तो खुजली मिटाने के लिए कोई तो चाहिए. पति नहीं तो भाई ही सही।

मुक्ता - तो तूने अपने भाई से ही … पाप है ये!

मैं- कोई पाप नहीं है. यह तो शरीर की जरूरत होती है. चाहे तू पति से पूरी कर या अपने भाई से!

मुक्ता- गलत है यह … मैं नहीं करने वाली!

मैं - कुछ गलत नहीं है. देख तू बाहर किसी और से करवाएगी तो पकड़े जाने का डर! साथ में वह तुझे ब्लैकमेल भी कर सकता है. और बात बाहर आई तो घर टूटने और बदनामी का डर. और भाई के साथ कोई डर नहीं क्योंकि वह तो बताने से रहा किसी को! और जब चाहे तब चुदवा सकती है।

मुक्ता- हाँ, वो सब तो ठीक है … पर भाई के साथ नहीं यार!

मैं- मैं भी तो चुदवाती हू अपने भाई से! पर रहने दे तेरे से नहीं हो पा रहा तो खुजलाती रह अपनी चूत अकेली! चल अब रात बहुत हो गई है, मुझे नींद आ रही है. बाय!

उसके बाद मैं अपनी बहन के बारे में सोचते-सोचते कब सो गया, पता ही नहीं चला. अगले दिन सुबह उठकर जब फेसबुक खोला तो देखा कि दीदी का मैसेज आया हुआ है.

दीदी- यार कोई और उपाय बता ना … अब रहा नहीं जाता!

मैं- देख, मेरे पास तो बस यही उपाय है जो सेफ है. जिसको मैं भी आजमा रही हूँ तुझे आजमाना हो तो आजमा, नहीं तो रहने दे।

दीदी- अच्छा ठीक है, पर वो मानेगा?

मैं सोचने लगा कि तू एक बार कह तो जरा मेरी रानी, मैं तो कब से तुझे चोदने के लिये तैयार हूँ. और मैं अपने लंड को मसलने लगा.

मैं- मानेगा क्यों नहीं, एक बार अपनी चूचियां और गाडं तो हिला उसके सामने … फिर देख!

दीदी- ठीक है, देखती हूँ!

तभी दीदी, मैं जिस कमरे में बैठा था, उसमें आ गयी और कहने लगी- झाड़ू लगाने आयी हूँ.

तो मैंने अपना फोन अलग रख दिया और मन ही मन कहने लगा 'झाड़ू तो बहाना है बहना, सच तो अपनी चूचियों और गाडं के दर्शन कराने आयी है.

तभी उसने कहा- पैर उठा … सोफे के नीचे बहुत धूल हो गयी है, साफ करना है.

यह बोलकर नीचे झुकते समय अपनी साड़ी गिरा दी जिससे उसकी ब्लाउज में छिपी चूचियां मुझे आधी दिखने लगी।

वाह! क्या चूचियां थी … गोलमटोल, कड़क, पसीने से लथपथ … मेरे मुंह में तो पानी आ गया, बस उनको चूसने का मन करने लगा.

खैर जैसे तैसे मैंने मन को समझाया. शायद दीदी ने मुझे देख लिया था और वह हल्की सी मुस्कान देकर मेरे हाथ के ऊपर बैठ गयी और कहने लगी- सोफे के पीछे भी धूल है, उसे भी साफ कर दूं.

उसकी गांड मेरे हाथ पर थी. वाह! क्या मखमली … जैसे कह रही हो कि मेरी प्यास बुझा दे! ये इतना आनंदित करने वाला था कि मेरे लंड ने आकार बदलना शुरू कर दिया था जो दीदी ने देख लिया था.

फिर वह हल्की सी मुस्कान देती हुई वहाँ से चली गयी. उसके जाने के बाद मैंने अपने आपको सम्हाला.

तभी फोन पर दीदी का मैसेज आया- शीनम यार, तू सही कह रही थी. वह मेरी चूचियों को घूर रहा था और गांड पर भी दवाब डाल रहा था।

मैं- मैंने कहा था ना, बहन हो या और कोई … लंड को तो बस चूत दिखती है.

दीदी- हां, अब लगता तो ऐसा ही है. पर कहीं मेरा यह वहम भी तो हो सकता है.

मैं- वहम नहीं है. अच्छा, जब घर पर कोई न हो तब नहाते समय अपने कपड़े उसी से मंगाना और कपड़ों में देखना कुछ अजीब हो तो!

दीदी- चलो ठीक है. बाय!

अगले दिन मैंने देखा कि पापा-मम्मी सामान खरीदने के लिए बाजार जा रहे हैं.

तो मैंने भी अपना कुछ सामान लाने के लिए बोल दिया.

छोटी बहन अंदर किचन में खाना बना रही थी.

मैंने उससे पूछा- दीदी नहीं दिख रही है?

तो उसने कहा- वो नहाने गयी है.

मुक्ता दीदी की आवाज आई- कोई मेरे कपड़े दे दो मैं लाना भूल गयी. वहीं कुर्सी पर रखे हैं.

युक्ति कहने लगी- जा तू दे आ, मेरे तो हाथ गंदे हैं.

मैंने कहा- ठीक है!

मैं तो इस मौके के इंतजार में कब से था.

दीदी के कपड़े उठा कर मैं अपने रूम में ले जाकर उनकी झल्लीदार पैंटी और ब्रा को चूमने और चाटने लगा.

उफ्फ! क्या पैंटी थी.

और बहन को याद करते करते कल्पनाओं में बहन को चोदते चोदते पैंटी को लंड पर लगाकर मुट्ठ मारने लगा, अंत में सारा वीर्य दीदी की पैंटी पर ही छोड़ दिया.

तभी दीदी की आवाज आई- कोई मेरे कपड़े लायेगा या फिर मैं अंदर यूं ही खड़ी रहूँ?

आवाज सुनते ही मैं होश में आया और कहा- लाया अभी!

फिर मैंने जल्दी से उसकी पैंटी साफ की और सारे कपड़े दे आया. कुछ समय बाद दीदी बाहर आकर घर के काम करने लग गयी. फिर हम सब ने खाना खाया और आराम करने लगे.

तभी दीदी का मैसेज (शीनम के लिए) आया- शीनम यार, तू सही कह रही थी. मैंने भाई से कपड़े मंगाए तो वे थोड़े चिपचिपे, गीले और वीर्य से सने हुए लग रहे थे.

मैं- अच्छा! वो भी तेरे साथ खेलना चाहता है!

मुक्ता- तो वह बहनचोद बनने की सोच रहा है. पर मैं उससे सीधे तो बोल नहीं सकती कि आजा अपनी दीदी को चोद डाल! कुछ उपाय बता ना यार … मेरी चूत का पानी टपकने लगा है. प्लीज यार! अब चुदे बिना और रहा नहीं जाता!

मैं- अरे बताती हूँ, थोड़ा सब्र कर! तभी अचानक से बाहर से गाड़ी की आवाज आई. उठकर देखा तो पापा मम्मी बाजार से वापिस आ गए थे.

दीदी- चल बाद में बात करती हूँ. और वह भी गांड मटकाती हुई बाहर आ गयी।

तभी पापा कहने लगे- मुक्ता, जल्दी से तैयार हो जाओ, तुम्हारी बस का समय हो गया है. और दीदी अपना सामान लेकर तैयार होने चली गयी. कुछ समय बाद पापा दीदी और उनके बच्चे को बस में बैठाने जाने लगे.

तो दीदी सबके गले लगने लगी और मुझे भी बड़े प्यार से गले लगाया. इस बार उनका गले लगाने का अंदाज़ा कुछ अलग ही थी. उसकी चूचियां मुझे कसकर दबोचे हुईं थी जो मेरे तन तन को रोमांचित कर रही थी.

वह बोली- मैं जल्द ही वापस आप लोगों से मिलने आऊंगी. सभी की बहुत याद आयेगी मुझे!

मैंने भी कह दिया- मुझे आपकी बहुत याद आयेगी.

जिस पर वह हल्की सी मुस्कान देकर अपने घर के लिए रवाना हो गयी. दीदी के जाने के बाद तो उनकी चूचियां और गांड के बारे में सोच सोच कर मेरी हालत खराब हो गई थी. और उधर दीदी की चुदाई की भूख बढ़ती जा रही थी 

जिसे वह अपनी सहेली शीनम यानि मुझे मैसेज कर करके बता रही थी. फिर मैंने सोचा कि आग तो दोनों ओर लगी हुई है, चुदाई तो करनी पड़ेगी. पर कैसे? दीदी तो अपने घर जा चुकी थी. उसी दिन शाम को शहर से मेरे दोस्त का फोन आया. 

उसने कहा- भाई, मेरे प्रोजेक्ट में मेरी मदद करने के लिए आ जा! मैंने सोचा कि यह अच्छा मौका है दीदी के यहाँ जाने का! और मैंने आने के लिए हां कर दी. मैंने घर पर बताया कि मैं कल अपने दोस्त के यहाँ काम से शहर जा रहा हूँ, 

अगर कोई काम हो तो बता दें. और हां दीदी के लिए कुछ भिजवाना हो तो वो भी दे दें. फिर दीदी के लिए कुछ सामान घर वालों ने मुझे ले जाने के लिए दे दिया. उसके बाद मैंने दीदी को कॉल किया और उनसे आने का बताया. 

तो वह बहुत खुश हो गयी और बोली- आ जा, मुझे भी बहुत जरूरी काम है तेरे से! मैंने मन ही मन कहा ‘काम नहीं, कामवासना चढ़ी है. चूत में चुदवाने की खुजली जो मची है.’ और फोन रख दिया। 

उसके बाद दीदी का मैसेज आया- यार शीनम, मेरा भाई कल घर आ रहा है. कुछ बता ना कि उसे कैसे राजी करूँ चुदाई के लिए? मैं- अच्छा! आने तो दे, फिर बता दूँगी. दीदी- ओके! अगले सुबह मैं जल्दी ही उनके घर पहुँच गया. 

मैंने देखा कि दीदी बच्चे को स्कूल छोड़ने जा रही थी. उसने कहा- जा अन्दर बैठ … मैं अभी आती हूँ तभी मैंने सोचा कि समय कम है तो बहन को कैसे राजी किया जाये कि वह खुद चुदवाए और कुछ कहना भी ना पड़े. 

मैंने बाहर और छत पर जाकर देखा तो मुझे कहीं भी दीदी के कपड़े नजर नहीं आये. तो मैंने सोचा कि शायद दीदी अभी नहाई नहीं है. फिर मैंने अलमारी खोली तो देखा उनके कपड़े वहीं पर थे. 

मैंने झट से उनकी ब्रा और पैन्टी निकाली और उन्हें चूमने चाटने लगा. क्या खुशबू थी ब्रा और पेन्टी की … उन्हें चाटने से ऐसा लग रहा था जैसे कि मैं दीदी की चूत चाट रहा हूँ. अन्त में मैं पैन्टी को लंड पर लगा कर मुट्ठ मारने लगा. 

तभी बाहर से दीदी के आने की आवाज आई तो मैंने ब्रा और पैन्टी को अपने बैग में छुपा कर अपने आप को सम्हाला। दीदी ने आकर मेरे लिए खाना बनाया, उसके बाद मैं खाना खाकर दोस्त के यहाँ चला गया जब शाम को वापस आया तो देखा दीदी और बच्चा आपस में खेल रहे थे. 

मुझे देखकर दीदी कहने लगी- आ गया, चल आकर खाना खा ले! उसके बाद हम खाना खाने लगे. तभी मेरी नज़र दीदी की छाती पर पड़ी. मैं तो देखता ही रह गया. उसकी चूचियां ब्रा ना पहनने की वजह से कुछ ज्यादा ही बड़ी लग रही थी. 

तभी वह मुझसे कहने लगी- क्या देख रहा है? मैंने कहा- कुछ नहीं! और वह मुस्कराने लगी. उसके बाद वह जाने लगी. चलते वक्त उसकी चूचियां और गांड कुछ ज्यादा ही हिल रही थी जिन्हें देखकर मेरे मुंह से आह निकल गयी. 

जिससे वह कहने लगी- क्या हुआ? मैंने कहा- कुछ नहीं! कुछ समय मेरी ओर देखकर मुस्कराती हुई वह वहाँ से चली गयी. शायद उसने मेरे लंड के उभार को देख लिया था. उसके बाद हम बैठकर टीवी देखने लगे. 

दीदी बैड पर लेटकर और मैं सोफे पर बैठकर टीवी देख रहा था. तभी मेरे फोन पर मैसेज आने की घंटी बजी. देखा तो दीदी का मैसेज था- यार शीनम, मेरा भाई मुझे घूर घूर कर देख रहा था. 

अभी दिन में जब मैं नहाने गयी तो मेरी ब्रा और पैन्टी मिली नहीं, जिस वजह से मैं पहन नहीं पाई. ना पहनने की वजह से मेरी चूचियां और गांड कुछ ज्यादा ही हिल रही हैं. जिन्हें देखकर उसका खड़ा हो गया. 

मैं- चलो जो हुआ अच्छा हुआ. अब क्या … बस चुदवा ले! दीदी- क्या चुदवा ले, उससे सीधे थोड़ी कह सकती हूँ कि आ जा अपनी बहन को चोद दे. कुछ और उपाय बता ना यार जिससे मुझे वह चोद भी दे और मुझे उससे कुछ कहना भी ना पड़े। 

मैं- अच्छा, फिर मैं जैसा कहूँगी, वैसे करना पड़ेगा. दीदी- अच्छा ठीक है, बता क्या करना है? मैं- देख तू उससे पहले ही सो जाना और अपने पेटीकोट को जांघों तक इस तरह से करके सोना कि उसे तेरी चूत नजर आये जिससे वह खुद तुझे चोदने पर उतारू हो जाये! 

और हाँ … उसे ऐसा लगना चाहिए कि तू बेसुध गहरी नींद में सो रही है जिससे उसे कुछ करने में डर ना लगे. लाईट चालू करके सोना जिससे उसे तेरे पूरे शरीर के दर्शन हो सकें. 

दीदी- अच्छा ठीक है, मैं ऐसा ही करती हूँ! मैं- और हां, वह चाहे तेरे साथ कुछ भी करे … चोदे, काटे, चूसे, चुसवाये, गांड मारे, तू कुछ भी ना कहना, बस उसका साथ देना। बेस्ट ऑफ लक चुदाई के लिए … खूब चुदना मेरी रानी! 

दीदी- अच्छा ठीक है. बाय, मैं सोने का नाटक करती हूँ. कुछ समय बाद मैंने उठकर देखा दीदी सो रही थी और उसका पेटीकोट जांघों तक उठा हुआ था. पैन्टी ना पहनी होने से उसकी चूत व गांड साफ़ साफ़ नज़र आ रही थी. 

वाह! क्या चूत थी गुलाब की पंखुड़ियों जैसी! एकदम कसी हुई, फूली हुई … मेरे मुंह में यह सब देखकर पानी आ गया. तभी मैंने एक-दो आवाज लगाईं- दीदी दीदी! पर वह सोने का नाटक कर रही थी. फिर क्या था … मैं अपने हाथ उसकी जांघो पर रखकर सहलाने लगा. 

कभी कभी बीच में उसकी कमर को तो कभी पेट को मसलता और चाटता. इससे उसकी सांसें गर्म और तेज होने लगी थी पर उसने बिल्कुल भी विरोध नहीं किया. 

मैंने हिम्मत करके उसके ब्लॉउज के उपर से ही चूचियां दबाना चालू कर दिया. जिससे वह सिसकारने लगी- उह्ह आहह उई ईईई उफ! पर उसने कुछ नहीं कहा. तो मैंने उसकी चूत को सहलाने लगा. 

दीदी की चूत चूतरस से भीग चुकी थी जो यह अहसास दिला रही थी कि वह पूरी तरीके से चुदने के लिए तैयार है. पर मैंने सोचा कि इतनी जल्दी भी क्या है, पूरे मजे लेकर ही चोदूंगा. 

फिर मैंने होंठों पे होंठ रख दिये और चूसने लगा. 5 मिनट की जोरदार चुसाई के बाद उसने आंखें खोलकर देखा … पर कुछ बोली नहीं. मौके का फायदा उठाकर मैंने अपनी पैंट निकालकर रख दी और लंड को उसके मुंह में घुसेड़ दिया और अन्दर बाहर करने लगा. 

यह अहसास मुझे पागल करने लगा और मैं जोश में आकर लंड को तेजी से अन्दर बाहर उसके गले तक उतारने लगा- फक्क बेबी … उहह् … आहह … कम ऑन फास्ट! जिससे उसकी सांस रुकने की वजह से आंखों से आंसू बहने लगे. 

मैंने समय रहते लंड को बाहर निकाल लिया. फिर मैं उसके बूब्स को एक एक करके चूसने और मसलने लगा जिससे वो सिहर उठी और मेरे सिर को अपनी चूचियां पर दबाने लगी और आहें भरने लगी. 

पर वह अभी कुछ नहीं बोल रही थी. मैंने सोचा कि जब तक दीदी बोलेगी नहीं, तब तक इसे चोदने में मजा नहीं आयेगा. चुदाई तो इसकी बुलवाकर ही करूँगा, चाहे कुछ हो जाए. 

फिर मैं वहाँ से उठकर जाने लगा. तभी दीदी कहने लगी- कहाँ जा रहा है? तो मैंने कह दिया- नींद आ रही है, सोने जा रहा हूँ. इस पर दीदी कहने लगी- मेरी नींद उड़ा कर … तुझे सोने की पड़ी है. पहले मुझे तो शांति दे दे! 

मैंने कहा- शांति क्या, जो मांगोगी वो दे दूंगा. पर पहले बोलो तो? तो वह कहने लगी- अच्छा क्या कहना है, कह देती हूँ! 

मैं- तो ऐसे कहो कि भाई मुझे चोद दे. अपनी बहन की गर्मी को शांत कर दे. मेरी चूत को फाड़ दे प्लीज! वह ऐसा सुनकर शर्मा गयी और गर्दन नीचे करके मुस्कराने लगी. 

मैंने कहा- अच्छा नहीं कहना तो रहने दो! कहकर मैं वहाँ से जाने लगा तो उसने मेरा हाथ पकड़ लिया और बोली- रुको तो! मैंने कहा- पहले बोलो! उसने कहा- अच्छा ठीक है, बैठो, बोलती हूँ! 

दीदी- भाई अपनी बहन की चुदाई … चुदाई इतनी करो कि मेरी फुद्दी फट जाये और गर्मी शांत हो जाये. प्लीज प्लीज! मैं- यह हुई ना बात … अब तो तेरा भाई तुझे चोद चोदकर कुतिया बनाकर ही छोड़ेगा. 

दीदी- तो बना दे ना बहनचोद … किसने रोका है तुझे! मैं- अब देख तेरे भाई और इस 7 ईंची लंड का कमाल! और यह बोलकर मैं भूखे शेर की तरह झपट पड़ा और उसकी चूचियां जोर से मसल दी. 

उसके मुंह से आह निकल गयी- मारेगा क्या? आराम से कर! मैं- हां मारूंगा, फाड़ूंगा … सब करूँगा साली कुतिया. आज तेरी गर्मी तेरा भाई शांत करेगा! बोलते हुए मैं उसे किस करने लगा. 

कुछ समय बाद उसकी चूचियों को एक एक करके पीने और काटने लगा. करीब 10 मिनट चूसने के बाद उनमें दर्द और खून झलकने लगा. दीदी- साले हवशी कुत्ते … छोड़ उन्हें … दर्द हो रहा है. उईईईई माँ … उफ्फ … बचाओ मुझे! 

मैं- आज कोई नहीं आने वाला साली कुतिया! आज तेरी चूत और गांड को रंडी की चूत, गांड बनाकर छोड़ूंगा! दीदी- तो चूत गांड को फाड़ ना! इन्हें तो छोड़ दे प्लीज! 

उसके बाद मैंने उसकी चूत में उंगली घुसा दी जिससे वह थोड़ी सी चिहुँक उठी. तब चूत में मैंने अपनी एक साथ तीन उंगलियाँ डाल दी और अन्दर बाहर करने लगा. दीदी- उहह हह अम्ममा … फ्कक … फास्ट कर प्लीज! 

मैं- हां मेरी चुदाई की रानी, तेरी चुदाई कम हुई है ना … तो आज तेरी खूब चुदाई होने वाली है. दीदी- कर दे … बस डाल दे अपना लंड अपनी प्यारी बहना की चूत में! 

बना इसे मेरा प्रिय गहना … अब रहा नहीं जाता! मैं- अभी ठहर जा मेरी चुदक्कड़ बहना … जरूर बनाऊंगा अपने लंड को तेरा गहना! बोलकर मैं 69 की पोजीशन में आ गया और उसकी चूत के दाने को काटने और जीभ से सहलाने लगा. 

जिससे वह जोर जोर से सिसकारने और कहने लगी- खा जा इस चूत को और बन जा इसका सैंया! और हाथों से वह मेरे सिर को चूत पर दबाने लगी. मैं चूत को बेतहाशा चाटे जा रहा था और उंगलियों को तेजी से अंदर बाहर कर रहा था. 

दीदी अपने सुख के सातवें आसमान पर थी और जोर जोर से बोल रही थी- इस बहना की चूत खा जा … माँ चोद दे इसकी! इसकी सारी भूख मिटा डाल … इसकी सारी गर्मी निकाल दे भाई ईईई … फक्क मी … उहह यायय यय! कहती हुई वह झड़ गयी और निढाल पड़ गयी. 

मैंने बहन की चूत का सारा पानी पी लिया. कितना स्वादिष्ट था … वाह!! लेकिन मैं कहाँ पीछे हटने वाला था … अभी तो असली मजा बाकी था. मैं निढाल पडी़ बहन की चूत को लगातार चाटता और सहलाता रहा. 

जिससे वह फिर से गर्म हो गई- अब और इंतजार मत करा मेरे सैंया भैया! डाल दे अपनी बहन की चूत में अपने लौड़े को और फाड़ डाल अपनी बहन की फुद्दी! 

मैं- हां अभी ले मेरी रंडी रानी बहना, अब जा रहा है तेरी चूत में मेरा गहना! बहन की चूत पर लंड रखकर मैंने एक झटका दिया तो आधा लंड अंदर चला गया जिससे दीदी चिल्लाई- बहनचोद मादरचोद … मार दिया साले हवसी ने! फाड़ दी मेरी चूत … निकाल प्लीज मम्मी इइइइ! 

मैं- तू तो पहले भी चुदी है. तो क्यों चिल्ला रही है साली? दीदी- अरे कम ही चुदती हूँ. कोई है ही नहीं चोदने वाला. और तेरे जीजा का लंड तो बहुत छोटा है. 

मैं- अब चुद लेना खूब अपने भाई के इस बडे़ लंड से! और जब तक तेरी चूत की गर्मी शांत न हो जाये, तब तक चोदूंगा. कहते हुए एक जोर का झटका लगा कर पूरा लंड बहन की चूत में डाल दिया जिससे वह चिल्लाने को हुई पर मैंने होंठों से उसके मुंह को दबा लिया. 

कुछ समय वैसे ही रुकने के बाद मैंने झटके देना चालू कर दिया और लगातार स्पीड बढ़ाता गया. अब बहन को भी मजा आने लगा और वह भी अपनी गांड उठा उठा कर चुदाई के मजे लेने लगी. 15 मिनट की चुदाई में बहन एक बार पहले ही झड़ चुकी थी. 

अब हम दोनों ही अपनी चरम सीमा पर थे. दीदी- मार भाई … और जोर से चोद बहन को प्लीज! फास्ट … मम् उईई ईईई उहह हंहह … चोद! कहती हुई झड़ गयी. 

अब बारी थी मेरी झड़ने की! मैंने कहा- लेगी साली बहना इस लंडरस अमृत को? दीदी- तेरी बहन की चूत की प्यास इसी लंड रस से शांत होगी. भर दे इस रस चूत में अन्दर तक! 

मैं- ओके रंडी बहना! और एक जोर का झटका देते हुए बोला- ले रंडी! मैंने सारा वीर्य बहन की चूत में ही छोड़ दिया और असीम आनन्द का अनुभव किया. 

उसके बाद उसी रात 3 बार और बहन की चुदाई की. और अगले दिन मार्निंग सेक्स करके वापस घर आ गया. उसके बाद जब भी मैं दीदी के यहाँ जाता हूँ या फिर वह हमारे घर आती है तो अकेले मौका पाकर भाई बेहन की चुदाई का मजा लेते हैं दोनों!


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