ऑनलाइन XXX के चक्कर में खड़े लंड पर धोखा

Dilshad Ahmad


XXX के चक्कर में खड़े लंड पर धोखा :- रंडी के साथ बैड सेक्स करके मुझे गुजारा करना पडा जब एक लड़की ने ऑनलाइन दोस्ती करके मुझे सेक्स का मजा लेने दिल्ली बुलाया और दगा दे दिया. 

सलाम दोस्तो, मेरा नाम मुहम्मद जैद पठान है. मैं लखनऊ, उत्तर प्रदेश का रहने वाला हूँ, उम्र 35 वर्ष है. मैं पेशे से एक ग्रॅफिक डिजायनर हूँ. 

यह मेरी पिछले साल की रंडी के साथ बैड सेक्स की कहानी है, जो मेरे साथ 3 अप्रैल 2022 में घटित हुई थी. मेरी बात दिल्ली की एक शादीशुदा महिला अलीशा से एक वेबसाइट पर फरवरी 2022 से चैट के जरिए होने लगी थी. 

उसने स्वयं मुझे पहले मैसेज किया था. उसके बाद मैंने उसको अपनी हैंगआउट्स आईडी दी और हम हैंगआउट्स पर चैट करने लगे. 

वह बहुत गर्म बातें करती थी. हमने एक दूसरे से न्यूड पिक्स भी एक्सचेंज किए. साली बहुत गदराई औरत थी. उसने कहा था कि उसको बड़ा लंड बहुत पसंद है. 

हम काफ़ी दिनों तक चैट करते रहे और मैंने उसको पहले दिन ही मिलने के बारे में पूछ लिया था तो वह सहर्ष तैयार भी हो गयी थी. मैंने उससे कहा- 3 अप्रैल को मेरा दिल्ली में नेटवर्क मार्केटिंग का सेमिनार है, 

तो उस दिन ही मिलते हैं. उसने हां कह दिया. मैंने उसी दिन पूरे उत्साह के साथ हजरत गंज के रिजर्वेशन सेंटर जाकर रात की ट्रेन में अपना लखनऊ से दिल्ली का रिजर्वेशन करवा लिया. 2 अप्रैल की रात का जाने का और 3 अप्रैल की रात की वापसी का. 

मैंने वापस आकर उसको इसके बारे में चैट पर बताया. तो वह खुश हुई मगर शिकायती लहज़े में बोली- कम से कम एक रात तो रुको! 

मैंने तुरंत वापसी का 3 तारीख का रिजर्वेशन कैंसिल करवा कर 4 का करवा लिया और उसको सूचित कर दिया. वह खुश हो गयी. उसने चैट के दौरान मुझे यह भी बताया था कि वह मनीष नाम के अपने ऑफिस के जूनियर कुलीग और अपने बॉस से भी बहुत बार चुद चुकी है. 

मेरे निकलने से हफ़्ता भर पहले उसने यह भी बताया कि वह अपने फैमिली डॉक्टर से भी चुदवा चुकी है और वो भी उसको पहली बार में ही सिड्यूस करके चोदने को तैयार हो गया था. 

इससे मुझे कुछ शक हुआ और मैंने पूछा भी उससे! पर वह बोली कि जब एक औरत, किसी गैर मर्द को सिड्यूस करे, तो वह ना नहीं बोल सकता. इस पर मैंने सोचा कि हो सकता है, ये सच बोल रही हो. 

इसी तरह हमारी गर्म चैट चलती रही और जाने का दिन भी आ गया. दो अप्रैल को मैंने नहा धोकर अपनी पैकिंग कर ली और शाम के साढ़े आठ बजे चारबाग रेलवे स्टेशन के लिए निकल पड़ा. 

मेरी ट्रेन रात दस बजे की थी. मैंने स्टेशन पहुंच कर कुछ जरूरी सामान की खरीदारी की और प्लॅटफॉर्म पर आ गया. ट्रेन साढ़े नौ बजे स्टेशन पर लगी और मैं अपनी बोगी में जाकर अपनी बर्थ के नीचे वाली सीट पर बैठ गया. 

ठीक 10 बजे इंजन ने सीटी दी और ट्रेन चल पड़ी. दो लोगों से रास्ते में बोगी में कुछ देर बात हुई और फिर हम सो गए. सुबह साढ़े छह बजे मैं नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुंच गया और अजमेरी गेट साइड से बाहर आकर मेट्रो स्टेशन के गेट नंबर पांच के सामने उसको चैट पर मैसेज किया. 

पर वह पिछली रात से अब तक ऑफलाइन थी. सुबह दस बजे तक मैंने इंतजार किया मगर वह ऑफलाइन ही रही. इस बीच सुबह साढ़े सात बजे मेरा दिमाग खराब हुआ तो मैं जीबी रोड चला गया. 

उधर एक अंजान लड़के ने मुझसे बात शुरू की. उसने पूछा- आप चौंसठ नंबर पर जा रहे हो क्या? मैंने हां बोला, तो वह बोला कि मैं भी वहीं जा रहा हूँ. मुझे लगा कि चौंसठ नंबर में बढ़िया माल होंगे. 

फिर बावन नंबर कोठे के सामने आकर उसने मुझसे कहा- मेरे दोस्त ने यही बताया था कि यह ही बावन बटे चौंसठ नंबर है. 

मैं बोला- नहीं, चौंसठ नंबर आगे है. तो वह बोला- अरे आओ यार, इसी में चलो … चौंसठ नंबर वाला माल यहीं मिलेगा. तभी एक लड़का और आया और बोला- चौंसठ नंबर बंद हो गया है, वो लॉक्डाउन से पहले था. 

अब उसको ही यहीं शिफ्ट कर दिया है. हालांकि मैं उस वक्त जीबी रोड में कई बार रंडी चोदने आ चुका था, जब मैं नोएडा से ग्रेजुएशन कर रहा था. मगर आज सात साल बाद आया था तो इन दो मादरचोदों की चालबाज़ी समझ नहीं पाया और पहले लड़के के साथ बावन नंबर कोठे में चला गया. 

वहां दो अधेड़ उम्र की औरतें अन्दर एक छोटे हॉल में खड़ी थीं. उनमें से एक ने कहा- चल अन्दर चल. तो मैंने उत्तर दिया- नहीं, अभी मैं ऐसे ही आया था. 

मैं शाम को आऊंगा. मगर उस औरत ने मुझे जबरदस्ती पकड़ कर एक छोटे केबिन में धकेल दिया. फिर जो लड़का मेरे साथ कस्टमर बनकर आया था, वह भी आ गया और मुझसे बोला- चल चैकिंग करवा. 

मैं समझ गया कि यह भोसड़ी वाला यहां का दलाल है. मैंने कहा- भाई जाने दो मुझे प्लीज, मेरे पास कुछ नहीं है. तो वह गुर्रा कर बोला- सीधा खड़ा रह … और शराफत से चैकिंग करा ले … तब जाने दूँगा. 

मैं खड़ा हो गया और उसने मेरी जेबें चैक कीं और मेरा पर्स निकाल कर उसमें से सौ रुपए ले लिए. फिर बैग के आगे वाले खाने पर लगी चेन की चाभी मांगी. मैंने दे दी. चाभी को लेकर उसने चेन खोली और अन्दर से मेरा एक बड़ा पर्स निकालकर उसमें रखे दो हजार रुपयों में से हजार ले लिए. 

फिर वो मुस्कुरा कर बोला- चल … ऐश कर! यह कह कर वो बाहर जाने लगा. मैंने कहा- ओ भाई, सुनना जरा! वह पीछे मुड़ा, तब मैंने बोला कि भाई मैं दूसरे तबके का हूँ, 

आप लोगों को इस बात से कोई दिक्कत तो नहीं है? तो वह हंस कर बोला- यार यहां ठुकाई होती है बस उससे कोई फर्क नहीं पड़ता. मैंने कहा- भाई मैंने सोचा ईमानदारी से बता दूं. ये मैंने इसलिए कहा था कि शायद ये मेरी जात का हो और मुझे कुछ पैसे वापस कर दे. 

मगर कुछ फायदा नहीं हुआ. वह चला गया और एक बड़ी चुचियों वाली मगर गंदी सी शक्ल की औरत अन्दर आ गई. उसने केबिन का दरवाजा बंद कर दिया और अपनी सलवार खोल कर नीचे से नंगी हो गई. 

उधर ट्रेन की बर्थ जितने एक छोटे से बिस्तर पर टांग फैला कर लेट गयी. वह मुझसे बोली- खोल रे! मैंने भी बेमन से अपनी लोवर नीचे की और अंडरवियर नीचे करके उसके ऊपर चढ़ गया. 

मैंने उस रंडी की चूचियां दबाते हुए उसकी गर्दन पर किस करनी शुरू की. तो उसने चिल्लाकर मुझे झटक दिया और दो सस्ते सरकारी कंडोम निकाल कर मेरे लंड पर चढ़ाने वास्ते अपने हाथ आगे बढ़ाए. 

मैंने अपना बढ़िया क्वालिटी का कामसूत्र सुपरथिन कंडोम लगाना चाहा तो उसने मना कर दिया. वह बोली- अपना बर्बाद मत कर … यही लगा ले! उसने जबरन एक के बाद एक करके दो कंडोम मेरे लंड पर चढ़ा दिए और फिर से टांगें फैलाकर लेट गयी. 

मैंने उसके ऊपर आकर अपने लंड का निशाना उसकी क्लीन शेव्ड चूत पर लगाया. तो उसने अपने हाथ से मेरा लंड पकड़कर निशाने पर लगा दिया. मैंने धीरे धीरे लंड उसकी चूत में प्रवेश करा दिया और उसकी चूचियां पकड़ लीं. 

तो उसने मुझे थप्पड़ मारकर कहा- बहनचोद चूचियां मत पकड़. मैंने अपने दोनों हाथ उसके चूचों के दोनों तरफ टिकाकर धीरे धीरे धक्के मारने चालू किए. 

पांच मिनट बाद मैं उस साली को जोर जोर से पेलने लगा, तो उसने अपनी टांगें कसकर मेरी कमर पर लपेट लीं और मुझे इतना टाइट जकड़ कर पकड़ लिया कि मेरे लिए धक्के मारना नामुमकिन हो गया. 

मैंने उसको टांगें जकड़ने से मना किया तो साली रांड बोली- तो धीरे धीरे चोद. मुझे बेहद गुस्सा आ रहा था कि एक तो साला लुट गया ऊपर से ये हरामी औरत चुदने में नखरे पेल रही है. 

मैंने कुछ देर तो धीरे धीरे ही धक्के मारे मगर फिर से तेज तेज चोदने लगा. हम दोनों की सांसें तेज चल रही थीं. उसने कहा- मेरे मुँह पर सांसें मत छोड़! 

मैंने उसको फुसफुसा कर बोला- तेरी सांसों को महसूस करने दे. ये कह कर मैं उसकी नाक के पास अपनी नाक ले गया, तो उसने फिर से मुझे थप्पड़ मार कर पीछे धकेल दिया. 

मैंने होंठ चूमने चाहे, तो उसने गुस्से से मुझे देखा और अपने ऊपर से धकेलती हुई बोली- चल उठ, भाग यहां से भोसड़ी के! मैंने किसी तरह मिन्नतें करके उसको मनाया, 

तब जाकर मानी. मैं हचक कर साली को पेलने लगा,. तो उसने फिर से अपनी टांगों की पकड़ मेरी कमर और गांड पर सख़्त कर दीं. दो निरोध लगे होने की वजह से चूत लंड को महसूस ही नहीं हो रही थी. खैर … 

किसी तरह आधे घंटे की चुदाई के बाद मैं उसकी बुर में डिस्चार्ज हो गया और लंड बाहर निकालकर उसके ऊपर से उठ गया. हम दोनों अपनी सांसों को नियंत्रित करने लगे. वह भी उठ गयी और अपनी सलवार पहन कर बाहर चली गई. 

मैंने भी अपनी अंडरवियर और लोवर पहना, जूते पहने और अपना बैग कंधे पर टांगकर और जूते चप्पल वाला थैला हाथ में पकड़ कर केबिन से बाहर निकल आया. मैं कोठे से बाहर जाने लगा, तो सामने वो हरामी लौंडा दिखाई दिया. 

मैंने एक नफरत भरी नजर उस दलाल पर डाली, जिसने मुझे यहां धोखे से लाकर फंसाया था. बाहर आकर मैं बेहद गुस्से में था और अपनी बेवकूफी को कोसते हुए स्टेशन की ओर जाने वाली सड़क पर चलने लगा. अभी तक अलीशा का कोई मैसेज नहीं आया था, 

जिससे मेरा गुस्सा और बढ़ गया. मैंने स्टेशन पर आकर मेट्रो स्टेशन के सामने दस बजे तक इंतजार किया और जब उसका कोई मैसेज नहीं आया तो भारी कदमों से स्टेशन के पास डी बी गुप्ता रोड, पहाड़ गंज की ओर चल पड़ा. 

फ़्लाई ओवर से होते हुए मैं डी बी गुप्ता रोड के बाईं तरफ मौजूद एक टूरिस्ट लॉज में गया और एक दिन के लिए सिंगल रूम का दाम पूछा. मैनेजर ने मुझसे पूछा- एसी या नॉनएसी? 

मेरे नॉन एसी कहने पर उसने कहा- आठ सौ रुपए. मैं मुड़ कर लॉज से बाहर जाने को हुआ तो गार्ड मेरे पीछे भागा भागा आया और मुझे वापस रिसेप्शन के पास बुलाया. मैं गया, तो मैनेजर ने पूछा- कितने दिनों के लिए रूम चाहिए? 

मैंने उत्तर दिया- बस आज के लिए, कल मेरी ट्रेन है. फिर उसने पूछा- आप कितने तक में चाह रहे हैं? मैंने कहा- पांच सौ तक में. उसने पूछा- चौथी मंज़िल पर चलेगा? 

मैंने हामी भर दी क्योंकि जीबी रोड पर लुटने के बाद अब मेरे पास सिर्फ़ एक हजार रुपए बचे थे. फिर मैनेजर ने रजिस्टर में मेरी एंट्री करवाने के बाद पांच सौ रुपए लेकर मुझे कमरे की चाभी दे दी. मैं अपना सामान लेकर ऊपर चढ़ने लगा. 

पीछे पीछे बेलबॉय भी था. बेलबॉय ने चाभी मुझसे लेकर रूम खोला और अन्दर चाभी के सॉकेट में चाभी लगा कर लाइट और पंखा चालू कर दिया. फिर वह मेरी आईडी की फोटोकॉपी लेकर चला गया. 

मैंने अपना सामान व्यवस्थित करके रूम अन्दर से बंद किया और बाथरूम में जाकर ब्रशकर के नहाया और नए धुले हुए कपड़े पहन कर सोचने लगा कि आख़िर बात क्या है, 

अलीशा ऑनलाइन क्यों नहीं आ रही है! अभी मैं अपने विचारों में खोया हुआ ही था कि अचानक अलीशा का मैसेज आया- हाय. मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा. मैंने भेजा- कहां थी यार. .. ऑनलाइन क्यों नहीं आई कल से! 

उसने बोला कि छह बजे तक वो व्यस्त है. मुझे फिर शक हुआ कि आज तो सनडे है, तब ये किधर व्यस्त है, मगर मैंने इस पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया. फिर करीब पंद्रह मिनट हमारी बातें हुईं. पहले तो वह बोली कि शाम को छह बजे के बाद मेरे लॉज में आएगी चुदाई करने, 

मगर जब मैंने कहा कि लॉज वाले नहीं मानेंगे, तो वह घर पर मिलने को तैयार हो गयी. मैंने उसको पंजाबी बाग मेट्रो स्टेशन के बाहर कार पार्किंग में आने को बोल दिया और उसने भी हामी भर दी. 

उसके बाद हमने अपनी बात ख़त्म की. मैं सफर से थक गया था, तो सो गया. शाम चार बजे मेरी नींद खुली और मैंने उसको मैसेज किया कि मैं लॉज से निकल रहा हूँ. मगर वह अभी तक ऑफलाइन थी. मैं कमरा लॉक करके नीचे आया और लॉज से बाहर आकर नई दिल्ली रेलवे स्टेशन की ओर निकल पड़ा. 

करीब पंद्रह मिनट बाद मैं नई दिल्ली मेट्रो स्टेशन के गेट नंबर चार के बाहर था. मैं अन्दर गया और जाकर टिकट काउंटर पर पंजाबीबाग जाने की जानकारी ली. 

स्टाफ ने मुझे बताया कि आपको तीन बार मेट्रो ट्रेन चेंज करनी पड़ेगी. पहले रेड लाइन से राजीव चौक तक जाओ, फिर राजीव चौक से ब्लूलाइन से कीर्तिनगर जाओ और फिर कीर्तिनगर से ग्रीनलाइन से पंजाबी बाग. 

मैंने उससे कहा- राजीव चौक का एक टोकन दे दो. तो उसने बताया कि पूरा पंजाबी बाग तक का ले सकते हो आप. मैंने बीस रुपए देकर पंजाबी बाग का टोकन ले लिया और जाकर प्लॅटफॉर्म नंबर दो से नई दिल्ली से राजीव चौक के लिए मेट्रो पकड़ ली. कुछ ही मिनटों में मैं राजीव चौक स्टेशन पहुंच गया और फिर वहां से कीर्तिनगर और कीर्तिनगर से पंजाबी बाग पहुंचने तक समय शाम का सवा पांच हो चुका था. 

पंजाबी बाग मेट्रो स्टेशन से बाहर आकर मैं इस स्टेशन के गेट नंबर एक से बाहर आया और उसके बोर्ड के सामने अपनी एक सेल्फी क्लिक करके अलीशा को भेज दी और लिखा- डार्लिंग मैं पहुंच गया हूँ, तुम कहां हो? 

परंतु वह अभी भी ऑफलाइन थी और उसका कोई जवाब नहीं आया. मैं खड़ा खड़ा इंतजार करता रहा और सात बज गए. 

तो मैंने फिर से मैसेज किया- कहां हो यार, मैं कितनी देर से इंतजार कर रहा हूँ? मगर वो ऑनलाइन आई ही नहीं. इस तरह सात चालीस हो गये. तो मैंने एक और मैसेज करके पूछा कि वह कहां है. मगर नतीजा वही रहा. वो ऑनलाइन नहीं आई.

अब तक मैं समझ चुका था कि मेरे साथ एक गंदा मजाक किया गया है. या तो कोई लौंडा मुझसे अलीशा बनकर बात कर रहा था या फिर ये औरत एक फेक और फ्रॉड औरत है. 

ऐसा मुझे लगा मगर जो फोटो उसने मुझे चैट पर भेजी थीं, वो कहीं से भी नेट से डाउनलोड की हुई नहीं लग रही थीं. वे सारी फोटो किसी घर की या गार्डन की … या कार के सामने की थीं. 

मैंने सोचा हो सकता है उसको कोई काम आ गया हो इसलिए लेट हो रही है. मगर जब रात के साढ़े आठ बज गए तो मैं समझ गया कि वो अब नहीं आने वाली. 

मैंने पंजाबी बाग मेट्रो स्टेशन के गेट नंबर दो के बगल में बनी कार पार्किंग में हर जगह उसकी बीएमडब्लू कार को ढूँढा. मगर वो मुझे कहीं नहीं दिखी. मैं गुस्से में तमतमाते हुए एक खाने के ठेले के पास गया और वेज थाली ऑर्डर कर दी. 

खाना खाकर मैं वापस पंजाबी बाग मेट्रो स्टेशन में घुसा और कीर्ति नगर की मेट्रो पकड़ ली क्योंकि अगर मैं और इंतजार करता तो पंजाबी बाग में ही फंस जाता. 

दिल्ली मेट्रो सेवा सिर्फ़ रात के साढ़े नौ बजे तक ही चालू रहती है और मैं अभी नहीं जाता तो वहीं फंस जाता. फिर कीर्तिनगर से राजीव चौक और वहां से मैं नई दिल्ली मेट्रो स्टेशन पहुंचा. 

उसके बाद गेट नंबर चार से बाहर आकर मैं गुस्से और दुख से भरा वापस अपने लॉज आ गया. मैं समझ नहीं पा रहा था कि आख़िर मैंने इस व्यक्ति का मर्द या औरत, जो भी था ये, इसका मैंने क्या बिगाड़ा था … 

जो इसने मेरे साथ ऐसा किया. रूम में आकर मैंने कपड़े बदल कर टी-शर्ट और लोवर डाला और बिस्तर पर लेट कर मोबाइल देखने लगा. अलीशा को पेलने की योजना के साथ साथ मैंने दो कपल्स से भी बात की थी. 

वे भी दिल्ली आने को तैयार थे मगर ऐन टाइम पर चंडीगढ़ के कपल जो थे, उनमें पत्नी की तबीयत बिगड़ गई और गाज़ियाबाद वाले बंदे की गर्लफ़्रेंड के पीरियड चालू हो गए, तो वे नहीं आ पाए. 

मेरे मोबाइल पर उनका संदेश आया- क्या हुआ, अलीशा की चुदाई चालू हुई? तो मैंने उन्हें पूरी बात बता दी. तब उन्होंने भी मुझसे संवेदना जताई. इससे मेरा दिल थोड़ा हल्का हुआ. 

मैंने सोचा कि बहनचोद दिल्ली चुदाई करने आया हूँ तो चूत तो मारूँगा ही. मैं रूम से बाहर आकर सीढ़ियों से नीचे उतरा और लॉज से बाहर निकल कर एक बार फिर जीबी रोड की तरफ चल पड़ा. 

मगर इस बार मैं सावधान था. मेरे पास तो पांच सौ रुपए ही शेष थे तो मैंने एटीएम से हजार रुपए निकाल लिए और सीधे चौंसठ नंबर कोठे में घुसा. 

फर्स्ट फ्लोर पर ही एक आंटी ने जबरन मुझे पकड़ कर दाईं तरफ वाले हॉल में खींच लिया और केबिन में धकेल दिया. मैंने विरोध किया, पर मेरी एक ना चली. फिर एक बड़ी बड़ी चूचियों और बड़ी सी गांड वाली औरत केबिन में आई और मुझसे पैसे मांगे. 

मेरे पूछने पर बोली- एक शॉट का हजार रुपए और एक घंटा. मैंने मोलभाव किया मगर वो नहीं मानी और ना ही वो मुझे बाहर जाने दे रही थी. 

तब मैंने मन मारकर उसको हजार रुपए दे दिए और वो केबिन से बाहर गई. फिर दो मिनट बाद ही वापस आकर उसने केबिन का गेट लॉक कर दिया और मेरे पास बिस्तर पर चादर बिछाकर बैठ गई. 

उसने अपनी स्कर्ट उतार दी और वो नीचे से नंगी हो गई. उसने मुझसे बख्शीश मांगी, पर मैंने कह दिया कि मेरे पास और पैसे नहीं हैं. तो साली बड़बड़ाती हुई अपनी चूचियां टॉप से निकाल कर लेटने लगी. 

मैंने उसको अपनी बांहों में भर लिया और गाल व गर्दन चूमने लगा. मगर वह बिल्कुल सहयोग नहीं कर रही थी और मुझे चूमने से रोक रही थी. मगर मैं उसकी दोनों चूचियों को कस कस कर दबाते हुए उसको चूमने में लगा रहा. दस मिनट के फॉर पले के बाद वह लेट गई. 

वह मेरे लंड पर मेरा अपना लाया हुआ कामसूत्र सुपरथिन निरोध लगाने लगी. फिर उसने मेरे लंड को पकड़ कर अपनी बुर के छेद पर लगा दिया. मैंने उसकी चूत को एक बार सहलाया तो वो चिल्लाकर बोली- ये क्या कर रहा है साले. .. 

मेरी चूत से हाथ हटा! मैंने हाथ हटा कर लंड पर दबाव दिया और धीरे धीरे अपना छह इंच लंबा और ढाई इंच मोटा लंड उसकी चूत में उतार दिया और धीरे धीरे धक्के मारने लगा. 

अपनी दोनों कोहनी के बल उसकी बगलों के अगल-बगल टिका कर आसन लगाया था. कुछ देर बाद मैंने अपनी स्पीड तेज कर दी और पच पच की आवाज के साथ उसको चोदना चालू कर दिया. हम दोनों की सांसें बहुत तेज चल रही थीं. 

उसने अपनी टांगें मेरी कमर पर लपेटकर मुझे कसकर अपने से चिपका लिया और चुदवाने लगी. मैंने उसके होंठों को चूमने और चूसने की कोशिश की, मगर उसने मना कर दिया. 

करीब एक घंटे की घमासान चुदाई के बाद मैं झड़ गया और हांफते हुए उसके मम्मों पर सर रखकर लेट गया. हालांकि जो मजा अलीशा को उसके घर में पेलने में आता, वो तो नहीं आया … पर कुछ नहीं से, 

तो ये कुछ बेहतर ही था. फिर हम अलग हुए और अपने कपड़े पहने. वह पहले केबिन से बाहर गई फिर मैं निकला. और जाते जाते उससे हंस कर पूछा- मुँह में लोगी? 

तो वो भी हंसती हुई बोली- हां लूँगी. मैंने लंड चूसने का रेट पूछा तो बोली- पांच हजार. मैंने मुँह बिचका दिया. फिर मैं कोठे से बाहर आकर लॉज में आकर अपने कमरे में बिस्तर पर लेट गया और पंद्रह बीस मिनट उस धोखेबाज रंडी अलीशा के मैसेज का इंतजार किया मगर वो अभी भी ऑफलाइन ही थी. 

मैं मोबाइल अपने बगल में पटक कर सो गया. सुबह सात बजे मेरी नींद खुली और फ्रेश होकर मैं सवा दस बजे अपना सामान लेकर नीचे आया और लॉज से चैकआउट कर लिया. 

फिर मैं नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर आकर वहां के मेट्रो स्टेशन के गेट नंबर चार के बाहर रेलिंग से लगे पत्थर पर बैठ गया. मेरा अब सेमिनार में जाने का बिल्कुल भी मन नहीं था. 

दोपहर के बारह बजे मैंने अपने पेटीएम वॉलेट बैलेंस से खाना ऑर्डर कर दिया. तीस मिनट बाद खाना आ गया और मैंने खाया. तभी मेरे हैंगआउट ऐप पर एक नए मैसेज का नोटोफिकेशन आया. 

मैंने चैट शुरू की. तो उस व्यक्ति ने खुद को दिल्ली की एक प्यासी शादीशुदा औरत बताया, जिसके पति का लंड जल्दी झड़ जाता है. वो अपने लिए ऐसे आदमी की तलाश में है, 

जो उसको रगड़ कर चोदे और उसकी गोपनीयता भी बनाए रखे. मैंने उससे वायदा किया कि मैं ऐसा ही करूँगा. तब उसने मेरे लंड का साइज पूछा और लंड की पिक्स मांगी. 

मैंने साइज बता दिया और पिक्स भी भेज दीं. उसका जवाब आया- वाउ नाइस! तो मैंने उत्तर में ‘थैंक्स. ..’ लिख कर भेज दिया. 

मैंने उससे उसका नाम पूछा पर उसने बताया नहीं. फिर मैंने उसको अपनी लोकेशन दी और कहा कि अगर वो शाम सात बजे से पहले आ सके, तो यहां आकर मुझे पिकअप कर ले. 

उसने जवाब दिया कि पति और समय देखकर वो बताएगी. मैंने नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के प्लॅटफॉर्म नंबर सोलह पर उसका काफ़ी देर इंतजार किया मगर वो नहीं आई, 

तो मुझे लगा शायद अभी उसके लिए आना संभव नहीं होगा. फिर मैं शाम पांच बजे स्टेशन से बाहर आसिफ अली रोड पर बने धार्मिक स्थल पर गया. 

वहां से बाहर आकर मेरा फिर से चुदाई करने का मन करने लगा तो मैंने जीबी रोड पर जाकर एटीएम से पैसे निकाले और चौंसठ नंबर पहुंच गया. 

वहां ऊपर जाकर दूसरी फ्लोर के बाएं तरफ बने हॉल में मौजूद एक मस्त गोरी चिट्टी औरत से मैंने रेट पूछा, तो बोली- एक शॉट का चार सौ और पूरी रात का बारह सौ. 

फिर मैंने बोला- आता हूँ अभी. मैं नीचे आकर कोठे से बाहर आ गया. दरअसल मुझे भूख लग आई थी तो मैं जीबी रोड पर थोड़ा आगे जाकर दाहिने तरफ की गली में मुड़ गया. वहां एक रेस्तरां में जाकर क्रिस्पेर्सस बरगर ऑर्डर करके खाया और अपने पेटीएम वॉलेट बैलेंस से पेमेंट कर दी. 

बर्गर खाकर मैंने सामने की दुकान से लस्सी पी और वापस चौंसठ नंबर की तरफ चल पड़ा. वहां पहुंच कर पता चला कि किसी ने एक रंडी का सर फोड़ दिया है और कोठे के अन्दर पुलिस मौजूद है. 

मैंने मन ही मन सोचा कि लो बेटा लग गया काम! फिर मैं थोड़ी देर और बेमकसद टहल कर चौंसठ नंबर के सामने पहुंचा और सीढ़ियों से सामने लगी पान की दुकान वाले से पूछा कि पुलिस चली गई? 

तो वो बोला- हां हां जाओ जाओ. .. अब सब ठीक है. मैं अन्दर चला गया. फर्स्ट फ्लोर की एक रंडी ने फिर से मुझे अन्दर हॉल में खींचने की कोशिश की, मगर मैं अपना हाथ छुड़ाकर ऊपर चला गया और सेकेंड फ्लोर पर बाईं तरफ के हॉल के अन्दर जाकर उस गोरी आंटी को ढूँढने लगा. 

मगर वो कहीं नहीं दिखी, तो मैं दाहिने तरफ के हॉल में गया. वहां एक लड़की अपने दो ग्राहकों के साथ केबिन्स से बाहर लगी बेंच पर बैठकर बियर पी रही थी. 

दो तीन लड़कियां आपस में बात कर रही थीं और एक लड़की अकेली बैठी थी. वह नेपालन थी और देखने में बहुत ही सुंदर और सेक्सी थी. मैंने उसके पास जाकर एक शॉट का रेट पूछा, तो उसने चार सौ रुपए बताया. 

मैंने कहा-चल. तो वो बोली- चल ला पैसे दे. मैंने उसको चार सौ रुपए दे दिए और वो एक कमरे में गई पर्ची कटवाने और थोड़ी देर बाद बाहर आकर मुझे एक खाली केबिन में ले गई. 

अन्दर आकर उसने बेड पर एक चादर बिछाई और एक कपड़ा निकाला. फिर सरकारी वाला सस्ता निरोध निकालने लगी. मैंने उसको रोक दिया और अपने बैग से कामसूत्र सुपरथिन निरोध निकाल कर उसको पकड़ा दिया. 

वह अपनी सलवार उतारकर बेड पर दीवार से टेक लगाकर बैठ गई. उसने कुर्ता और ब्रा उतार कर अपनी चूचियों को नंगा करके हिलाया. उसकी चूचियों का साइज करीब बत्तीस रहा होगा. 

मैं भी अपनी शर्ट, पैंट और जूते उतार कर उसके पास चिपक कर बैठ गया और उसको अपनी बांहों में भरकर कस कसके उसकी चूचियों को दबाने लगा. 

उसने सिसकारी लेकर कहा- ऐसे नहीं, धीरे धीरे दबा. मैं मुस्कुरा कर धीरे धीरे दबाते हुए उसकी गर्दन और गाल चूमने लगा. उसने भी होंठ नहीं चूमने दिए मगर मुझे अपनी बुर सहलाने दिया. 

मेरा लंड सहलाकर पूरा लोहे की तरह टाइट कर दिया. दस मिनट फोरप्ले करने के बाद मैंने उसको सीधा लिटा दिया और उसके ऊपर चढ़ गया. उसने मेरा लंड अपने हाथ से पकड़कर चूत के छेद के मुहाने पर टिका दिया. 

मैंने एक जोर के झटके के साथ लंड उसकी टाइट और चिकनी, गर्म चूत में पेल दिया. वह सिसक पड़ी और अपनी बांहों से मेरी पीठ और टांगों से मेरी कमर को कस लिया. 

पहले धीमे धीमे धक्के लगाकर मैंने उसको पांच मिनट चोदा फिर स्पीड तेज करके जोर जोर से ठोकने लगा. पूरे केबिन में हमारी तेज सांसों और पच पच थप थप की आवाज़ें गूंजने लगीं, जिनको सुनकर मैं कुछ ज़्यादा ही उत्तेजित हो गया और तूफ़ानी रफ़्तार से उसकी चूचियां दबाते हुए उसको पेलने लगा. 

साथ ही साथ मैं उसके गाल और गर्दन, चूचियों की घाटी को भी चूम चाट रहा था. काफी देर की धकापेल चुदाई के बाद मेरे लंड ने निरोध के अन्दर ही उसकी मस्तानी बुर में वीर्य की वर्षा कर दी. मैंने उसके बालों और गाल को सहलाकर एक दो बार और उसकी गर्दन और गाल चूमे, फिर अपना लंड उसकी चूत से बाहर निकाल कर उसके ऊपर से उठ गया. 

वह भी उठ गई और अपना कुर्ता और ब्रा सही करके उसने सलवार पहन ली. मैंने भी अपनी शर्ट और पैंट पहनकर जूते पहन लिए और उसको अपनी बांहों में भरकर बोला- रानी, अगली बार पूरी रात लूँगा तेरी! 

यह सुनकर वो मुस्कराई और बोली- ठीक है. अगली बार बख्शीश ज़्यादा देना, तो पूरी नंगी हो जाऊंगी. इसके बाद मैं अपना बैग कंधे पर टांगकर हाथों में जूते चप्पल का थैला लेकर केबिन से बाहर आ गया और सीढ़ियां उतरकर कोठे से बाहर निकल कर रेलवे स्टेशन की ओर चल पड़ा. 

रात आठ बजे मैं प्लेटफॉर्म नंबर सोलह पर पहुंचकर अपनी ट्रेन का इंतजार करने लगा. रात साढ़े नौ बजे मेरी ट्रेन प्लेटफॉर्म पर लग गई और मैं अपनी बोगी में जाकर अपनी सीट के नीचे सामान सेट करके बैठ गया. 

ठीक दस बजे ट्रेन नई दिल्ली से रवाना हो गई. मेरी बोगी में भी कई मस्त माल थे. एक दो से नैन मटक्का करके मैंने जुगाड़ लगाने की कोशिश भी. मगर बात नहीं बनी तो मैं मायूस होकर अपनी सीट पर बैठा रहा. 

मेरा रिजर्वेशन आरएसी में था तो मुझे एक यात्री के साथ आधी सीट शेयर करनी पड़ी, जिसकी वजह से मैं ठीक से सो नहीं पाया. 

सुबह छह बजकर पचास मिनट पर मैं लखनऊ जंक्शन के प्लेटफॉर्म नंबर छह पर उतर गया. अपना सामान लेकर मैं बाहर आया और अपने घर के लिए ऑटो पकड़ लिया. 

घर पहुंच कर मैं ऊपर सीधा अपने रूम में गया, बैग और थैला एक तरफ रखकर बिस्तर पर गिरकर सो गया. दोपहर दो बजे मेरी नींद खुली, 

तो मैंने हैंगआउट्स मैसेज चैक किए मगर अलीशा अभी भी ऑफलाइन थी और उसने मेरे किसी भी मैसेज का कोई जवाब नहीं दिया था. मुझे बेहद गुस्सा आया. 

मैंने उसको मैसेज किया कि जो उसने मेरे साथ किया है, उसका दुगुना बुरा उसके साथ होगा. उसके बाद भी मैंने उसको हैंगआउट्स और एक्सहैमस्टर चैट पर कई मैसेज किए. 

वो ऑनलाइन आई भी, मेरे मैसेज भी पढ़े. मगर उत्तर किसी का नहीं दिया. मैं अभी तक इसी असमंजस में हूँ कि आख़िर मेरी गलती क्या थी, 

जो उसने मेरे साथ केएलपीडी किया. आप सभी पाठकों से अनुरोध है कि ऑनलाइन किसी पर भी भरोसा करके मिलने जाने की भूल करके अपना समय और धन बर्बाद ना करें. 

मिलने से पहले फ़ोन पर या वीडियो कॉल पर बिना एक दूसरे का चेहरा देखे, बात करके ही जाएं.

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